जिस शरीर में उन्होंने तप कर के सिद्धि प्राप्त की होती हे वो शरीर
उन्हें बेहद प्रिय होता हे और उसमे आना सरल भी होता हे. इसलिए वो अपने
पूर्व स्थूल शरीर में प्रगट होते हे तब उसने पूर्व में जो शरीर धारण किया
होता हे वो द्रश्यमान होता हे. उसकी उम्र भी वही दिखती हे जिस वक़्त
उन्होंने अपने स्थूल शरीर का सूक्ष्मीकरण किया होता हे. सिद्ध पुरुष किसी
उच्च उद्देश्य की पूर्ति हेतु स्थूल शरीर से दर्शन देते हे और अपना देवी
कार्य सिद्ध करते हे. शरीर सूक्ष्म होने के कारण उसमे आकाश गमन की शक्ति भी
होती हे. इसलिए वो जहां चाहे वो तुरंत जा सकते हे. उनमे इन्द्रियातीत,
ज्ञान दर्शन, विचार सम्प्रेषण, दूरदर्शन, दूर श्रवण, जैसी अलौकिक सिद्धि भी
होती हे.
थियोसोफिकल सोसाइटी के मादाम ब्लावट्स्की और उसके अनुयायी मानते हे की हिमालय के ह्रदय समा उत्तराखंड के देवभूमि के क्षेत्रो में सिद्ध पुरुषो के सभा - सम्मलेन होते रहते हे और उसके निर्णय अद्र्श्य सहायको के माध्यम से क्रियान्वित होकर योग्य पात्र को लाभान्वित करते रहते हे. कुछ लोगो की मिल रही होती अद्र्श्य सहाय उसके दैवी वरदान के रूप में मिलती रहती हे.
स्वामी विवेकानंद ने अपने एक अनुभव को उल्लेखित करते हुए इस विषय में लिखा हुआ है की - " अमेरिका में धर्मसभा में और अन्य धार्मिक सम्मेलनों में जब व्याख्यान देने के लिए खड़ा होता था तो शरुआत में चिंतित रहता था की में क्या बोलूंगा और समजा पाउँगा या बोल पाउँगा या नहीं ? परंतु जैसे ही में बोलना शरू करता था मुझे ऐसा अनुभव होता था की जैसे कोई दिव्य सत्ता मेरी जीभ पर सवार होकर मुझे बोलने के लिए प्रेरित कर रही हो. उस समय में तन्द्रा अवस्था में आकर ज्ञान की ऐसी ऐसी बाते बोलने लगता था जिसकी खुद मुझे जानकारी नहीं होती थी ! उस समय मुझे ऐसा लगता था की जीभ तो मेरी हे मगर उससे बोली गई वाणी मेरी नहीं , दूसरे किसी और की हे. "
भारत के स्वतंत्र संग्राम में भी गांधीजी और अन्य नेता कहते थे की महर्षि अरविन्द जिस शक्ति का संचार करते हे उसका वो अनुभव वो करते थे और वही अनुभव उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे. जित का श्रेय स्वतंत्र्य संग्राम में स्थूल रूप से योगदान दिया हो उसको मिलता हे वो तो स्वाभाविक हे मगर उस के लिए सूक्ष्म वातावरण रचने की असाधारण भूमिका महर्षि अरविन्द की थी. महात्मा गांधीजी ने इस बात का उल्लेख भी किया हुआ हे.
स्वामी विवेकानंद ने अपने एक अनुभव को उल्लेखित करते हुए इस विषय में लिखा हुआ है की - " अमेरिका में धर्मसभा में और अन्य धार्मिक सम्मेलनों में जब व्याख्यान देने के लिए खड़ा होता था तो शरुआत में चिंतित रहता था की में क्या बोलूंगा और समजा पाउँगा या बोल पाउँगा या नहीं ? परंतु जैसे ही में बोलना शरू करता था मुझे ऐसा अनुभव होता था की जैसे कोई दिव्य सत्ता मेरी जीभ पर सवार होकर मुझे बोलने के लिए प्रेरित कर रही हो. उस समय में तन्द्रा अवस्था में आकर ज्ञान की ऐसी ऐसी बाते बोलने लगता था जिसकी खुद मुझे जानकारी नहीं होती थी ! उस समय मुझे ऐसा लगता था की जीभ तो मेरी हे मगर उससे बोली गई वाणी मेरी नहीं , दूसरे किसी और की हे. "
भारत के स्वतंत्र संग्राम में भी गांधीजी और अन्य नेता कहते थे की महर्षि अरविन्द जिस शक्ति का संचार करते हे उसका वो अनुभव वो करते थे और वही अनुभव उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते थे. जित का श्रेय स्वतंत्र्य संग्राम में स्थूल रूप से योगदान दिया हो उसको मिलता हे वो तो स्वाभाविक हे मगर उस के लिए सूक्ष्म वातावरण रचने की असाधारण भूमिका महर्षि अरविन्द की थी. महात्मा गांधीजी ने इस बात का उल्लेख भी किया हुआ हे.
इंग्लैंड में जन्मे ब्रिटिश हिप्नोटिस्ट, गूढ़ विद्या विशेषग्नय और लेखक डॉ. एलेक्जेन्डर केनन को भी तिब्बत के सिद्धयोगी का साक्ष्यात्कार हुआ था. १९३३ में प्रकाशित उसके पुस्तक , " ध इनविजिबल इन्फ्लुएंस " में उसने तिब्बत में हुए सिद्ध योगी का असाधारण अनुभव लिखा हे. उन्होंने भारत, चीन , तिब्बत का प्रवास किया था. तिबत के एक लामा साधू ने उसको अपने मंदिर की मुलाक़ात लेने के लिए आमंत्रण दिया था. जब वो अपने मित्र के साथ लामा सिद्ध पुरुष को मिलने के लिए जा रहे थे तब उसको जो अनुभव हुआ उसका वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा हे की -
" जिस जगह पर लामा योगी रहते थे उस जगह हम पहुँच गए थे. हमे मंदिर सामने ही दिख रहा था. मगर वहां पहुचना शक्य नहीं था . क्यों की हमारे सामने तक़रीबन ५० गज लंबी और बहोत गहरी खाई थी. हमारी ये मुश्किल दूर करने के लिए वो सिद्ध पुरुष ने एक शिष्य भेज हुआ था जो हमारा ही इन्तजार कर रहा था . उसने हमे योग की विधि अलग अलग उसके कहने के मुताबिक़ करने के लिए कहा. इस योग प्रक्रिया से ही आप ये खाई पर कर सकेंगे. हम वापिस नहीं जाना चाहते थे बिना मंदिर जाए इसलिए हमने वो योग क्रिया करने लगे. थोड़ी देर के बाद एक अदभुत चमत्कार हुआ और हम खाई को पर कर के मंदिर के पास खड़े हुए नजर आये. हमें ऐसा लगा मानो हम एयरोप्लेन की तरह अत्यंत स्पीड से उड़कर यहाँ आये हो.
" जिस जगह पर लामा योगी रहते थे उस जगह हम पहुँच गए थे. हमे मंदिर सामने ही दिख रहा था. मगर वहां पहुचना शक्य नहीं था . क्यों की हमारे सामने तक़रीबन ५० गज लंबी और बहोत गहरी खाई थी. हमारी ये मुश्किल दूर करने के लिए वो सिद्ध पुरुष ने एक शिष्य भेज हुआ था जो हमारा ही इन्तजार कर रहा था . उसने हमे योग की विधि अलग अलग उसके कहने के मुताबिक़ करने के लिए कहा. इस योग प्रक्रिया से ही आप ये खाई पर कर सकेंगे. हम वापिस नहीं जाना चाहते थे बिना मंदिर जाए इसलिए हमने वो योग क्रिया करने लगे. थोड़ी देर के बाद एक अदभुत चमत्कार हुआ और हम खाई को पर कर के मंदिर के पास खड़े हुए नजर आये. हमें ऐसा लगा मानो हम एयरोप्लेन की तरह अत्यंत स्पीड से उड़कर यहाँ आये हो.
उसके बाद डॉ. केनन और उसका मित्र बौद्ध मंदिर में लामा योगी के पास पहुंचे . लामा योगी के शरीर के आसपास गढ़ भूरे रंग का तेजविले छाया हुआ था. थोड़ी बातचीत करने के बाद केनन ने कोई योग सिद्धि का चमत्कार दिखाने के लिए आग्रह किया इसलिए कफ़न से लपेटा हुआ एक मृत मानवी का शरीर वह लाया गया. लामा ने डॉ. केनन को उसका परिक्ष्ण करने के लिए कहा. डॉ. केनन ने उसका परिक्ष्ण किया और कहा की ' ये मृत हुए एक सप्ताह से ज्यादा समय बीत गया हे. ' उसके बाद उस लामा योगी ने उस मृत शरीर के पास जाकर कुछ मंत्रोचार किये और खड़े होकर चलने का आदेश दिया . तुरंत मृत मानवी खड़ा हो गया और चलकर उसके सामने आ गया. डॉ. केनन और उसका मित्र अत्यंत आस्चर्य से देखते रहे. पास जाकर उस मृत मानवी को देखा तो पता चला की ये तो वही मानवी हे जिसने ये गहरी खाई पार करवाई हे. और योग प्रक्रिया सिखाई थी ! फिर वो मृत मानवी लामा योगी के पास गया और प्रणाम कर के उसके आदेश अनुसार कफ़न में सोकर फिर मृत हो गया. डॉ. केनन फिर उसका शरीर चेक किया तो वो बिलकुल मृत था. '
फिर लामा ने कहा - " मेरा ये शिष्य ७ वर्ष से मर गया हे. और दूसरे ७ वर्ष इसी मृत दशा में रह सकेगा. मुझे जब जरुरत होती हे तब में उसे जीवित कर के फिर उसे मृत कर देता हु. "
फिर लामा ने कहा - " मेरा ये शिष्य ७ वर्ष से मर गया हे. और दूसरे ७ वर्ष इसी मृत दशा में रह सकेगा. मुझे जब जरुरत होती हे तब में उसे जीवित कर के फिर उसे मृत कर देता हु. "
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